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月見

六月九日、新都の事始、八月十日上棟、十一月十三日遷幸と定めらる。舊き都は荒行ば、今の都は繁昌す。淺ましかりける夏も過ぎ、秋にも既に成にけり。やう/\秋も半に成行ば、福原の新都にまします人々、名所の月を見んとて、或は源氏の大將の昔の迹を忍つゝ、須磨より明石の浦傳ひ、淡路のせとを押渡り、繪島が磯の月を見る。或は白良、吹上、和歌の浦、住吉、難波、高砂、尾上の月の曙を、詠て歸る人も有り。舊都に殘る人々は、伏見廣澤の月を見る。

其中にも徳大寺左大將實定卿は、舊き都の月を戀て、八月十日餘に、福原よりぞ上り給ふ。何事も皆變り果て、稀に殘る家は、門前草深して、庭上露滋し。蓬が杣淺茅が原、鳥のふしどと荒果て、蟲の聲々恨つゝ、黄菊紫蘭の野邊とぞ成にける。故郷の名殘とては、近衞河原の大宮ばかりぞまし/\ける。大將其御所に參て、先隨身に、惣門を叩せらるるに、内より女の聲して、「誰そや蓬生の露打拂ふ人もなき處に。」と咎れば、「福原より大將殿の御參り候。」と申す。「惣門は鎖のさゝれて候ぞ。東面の小門より入せ給へ。」と申ければ、大將「さらば」とて、東の門より參られけり。 大宮は御つれ%\に、昔をや思召出でさせ給ひけん、南面の御格子開させて御琵琶遊されける處に、大將參られたりければ、「如何に夢かや現か、是へ是へ。」とぞ仰せける。源氏の宇治の巻には、優婆塞宮の御娘、秋の名殘を惜み、琵琶を調べて、夜もすがら心を澄し給しに、有明の月の出けるを、堪ずや思ほしけん、揆にて招き給ひけんも、今こそ思ひ知られけれ。

待宵の小侍從といふ女房も、此御所にてぞ候ける。此女房を、待宵と申ける事は、或時御所にて、「待宵、歸る朝、何れかあはれは勝る。」と御尋ありければ、

待宵のふけゆく鐘の聲聞けば、歸るあしたの鳥はものかは。

と讀たりけるに依てこそ、待宵とは召されけれ。大將彼女房呼出し、昔今の物語して、小夜もやう/\更行けば、ふるき都のあれゆくを今樣にこそうたはれけれ。

舊き都を來て見れば淺茅が原とぞ荒にける、 月の光はくまなくて秋風のみぞ身にはしむ。

と三反歌ひすまされければ、大宮を始め參せて、御所中の女房達、皆袖をぞ濕されける。

去程に夜も明ければ、大將暇申て、福原へこそ歸られけれ。御伴に候藏人を召て、 「侍從が餘に名殘惜げに思ひたるに、汝歸て何とも云てこそ。」と仰せければ、藏人 走り歸て、「『畏申せ』と候。」とて

物かはと君が云けん鳥の音の、今朝しもなどか悲かるらん。

女房涙を押へて、

またばこそ深行く鐘も物ならめ、あかぬわかれの鳥の音ぞうき。

藏人歸り參て、此由を申たりければ、「さればこそ汝をば遣つれ。」とて、大將大に感ぜられけり。其よりしてこそ物かはの藏人とはいはれけれ。