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御輿振

さる程に山門の大衆、國司加賀守師高を流罪に處せられ、目代近藤判官師經を禁獄せらるべき由、奏聞度々に及ぶといへども、御裁許なかりければ、日吉の祭禮を打ち留めて、安元三年四月十三日辰の一點に、十禪師、客人、八王子三社の神輿かざり奉りて、陣頭へ振奉る。下松、きれ堤、賀茂の川原、糺、梅たゞ、柳原、東北院の邊に、しら大衆、神人、宮仕、専當みち/\て、幾らといふ數を知らず、神輿は一條を西へいらせ給ふ。御神寶天にかゞやいて、日月地に落給かと驚かる。是によて、源平兩家の大將軍、四方の陣頭を固めて、大衆防ぐべきよし仰下さる。平家には、小松の内大臣の左大將重盛公、其勢三千餘騎にて、大宮面の陽明、待賢、郁芳、三つの門をかため給ふ。弟宗盛、知盛、重衡、伯父頼盛、教盛、經盛などは、西南の陣を固められけり。源氏には、大内守護の源三位頼政卿、渡邊の省授をむねとして、その勢僅に三百餘騎、北の門、縫殿の陣を固め給ふ。處は廣し、勢は少し、まばらにこそ見えたりけれ。

大衆無勢たるによて、北の門、縫殿の陣より、神輿を入れ奉らんとす。頼政卿さる人にて、馬よりおり冑をぬいで、神輿を拜し奉る。兵ども皆かくの如し。衆徒の中へ使者を立てゝ、申送る旨あり。その使は、渡邊の長七唱と云者なり。唱その日は、きちんの直垂に、小櫻を黄にかへいたる鎧著て、赤銅作の太刀を帶き、白羽の箭負ひ、滋籐の弓脇にはさみ、冑をばぬぎ高紐に掛け、神輿の御前に畏て申けるは、「衆徒の御中へ源三位殿の申せと候。今度山門の御訴訟、理運の條勿論に候。御成敗遲々こそよそにても遺恨に覺え候へ。さては神輿入れ奉らむこと仔細に及び候はず。但頼政無勢に候ふ。その上明けて入れ奉る陣より入せ給て候はば、山門の大衆は目たりがほしけりなど、京童の申候はむこと、後日の難にや候はんずらむ。神輿を入れ奉らば、宣旨を背くに似たり。又防ぎ奉らば年來醫王、山王に首を傾け奉て候ふ身が、今日より後、弓箭の道に分れ候ひなむず。彼と云ひ、此といひ、旁難治のやうに候。東の陣は、小松殿大勢で固められて候。其陣より入らせ給ふべうもや候ふらむ。」と、いひ送たりければ、唱がかくいふに防がれて、神人、宮仕暫くゆらへたり。

若大衆共は、「何でうその義あるべき、只此陣より神輿を入れ奉れ。」といふ族多かりけれども、老僧のなかに、三塔一の僉議者と聞えし、攝津の堅者豪雲進み出て申けるは、「尤もさいはれたり。神輿を先立て參らせて、訴訟をいたさば、大勢の中をうち破てこそ、後代の聞えもあらむずれ。就中にこの頼政の卿は、六孫王より以降、源氏嫡々の正統、弓矢を取て未だ其不覺を聞かず。凡武藝にも限らず、歌道にも勝れたり。近衞院御在位の時、當座の御會ありしに、『深山花』といふ題を出されたりけるに、人々讀煩ひしに、此頼政卿、

深山木のその梢とも見えざりし、櫻ははなにあらはれにけり。

といふ名歌仕て、御感に預る程のやさしき男に、時に臨んで、いかがなさけなう耻辱をば與ふべき。此神輿かき返し奉れや。」と僉議しければ、數千人の大衆、先陣より後陣まで、皆尤々とぞ同じける。さて神輿を先立てまゐらせて、東の陣頭待賢門より入れ奉らむとしければ、狼藉忽に出來て、武士ども散々に射奉る。十禪師の御輿にも、矢どもあまた射立たり。神人宮仕射殺され、衆徒多く疵を被る。をめき叫ぶ聲梵天までも聞え、堅牢地神も驚くらんとぞ覺えける。大衆神輿をば、陣頭に振り棄て奉り、泣く/\本山へ歸り上る。