1,2,3,4,5. |
6,7,8,9,10,11,12. |
13. |
15. |
16. |
14. |
17. |
18. |
20. |
19. |
22, 23, 24. |
25. |
26. |
27. |
28. |
29. |
30. |
31, 32, 33, 34, 35, 36, 50, 51, 52, 53, 54, 55 . |
37. |
38. |
39. |
40. |
41. |
42. |
43, 44. |
45, 46, 47, 48, 49, 56, 57, 58, 59, 60. |
61. |
62. |
64. |
65. |
66. |
68. |
69. |
67. |
70. |
71, 72, 73, 74. |
75, 76, 77, 78. |
79. |
76, 76, 77, 78. |
80, 81,82,83,84. |
85. |
88. |
89,90,91,92,93,94. |
95. |
96. |
97. |
98,99,101,102,103,104,105,106. |
107,108. |
111. |
112. |
115. |
116. |
117,118. |
119,120. |
121. |
122. |
123. |
124. |
125,126. |
127,128,129,130,131,132,133,134,135,136,137,138. |
139. |
140. |
141. |
142,143,144,145,146. |
147. |
148. |
149. |
150. |
151. |
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158. |
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160,161,162. |
163. |
164,165. |
166. |
167. |
168. |
178,179,181,182,183,184. |
185,186. |
197,198,199,200. |
201. |
204. |
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205. |
208. |
209. |
211. |
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218. |
219,220,221,223,224,230,232. |
233. |
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235,236,237,238,239. |
242. |
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250. |
252. |
253. |
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247,248. |
260. |
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263. |
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265,266,267,268,269,270,271. |
276,277,278. |
279. |
280. |
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282. |
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288. |
289,290,291,292,293,294. |
295,296,297,298,299,300,301,302,303. |
304. |
305,306,307,308,309,310,311,313,314,315,316,317. |
A6. |
A7. |
A8. |
A9. |
A10. |
A11. |
188. |
A23, A24. |
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枕草紙 (Makura no soshi) | ||
[109、319]
見ぐるしきもの
衣の背縫かたよせて著たる人。又のけくびしたる人。下簾穢げなる上達部の御車。例ならぬ人の前に子を率ていきたる。袴著たる童の足駄はきたる、それは今樣のものなり。つぼ裝束したる者の、急ぎて歩みたる。法師、陰陽師の、紙冠して祓したる。また色黒う、痩せ、にくげなる女のかづらしたる。髯がちにやせ/\なる男と晝寢したる、何の見るかひに臥したるにかあらん。夜などはかたちも見えず 又おしなべてさる事となりにたれば、我にくげなりとて、起き居るべきにもあらずかし。翌朝疾く起き往ぬる、めやすし。夏晝寐して起きたる、いとよき人こそ今少しをかしけれ。えせかたちはつやめき寐はれて、ようせずば、頬ゆがみもしつべし。互に見かはしたらん程の、いけるかひなさよ。色黒き人の、生絹單著たる、いと見ぐるしかし。のしひとへも同じくすきたれど、それはかたはにも見えず。ほその通りたればにやあらん。
ものくらうなりて、文字もかかれずなりたり。筆も使ひはてて、これを書きはてばや。この草紙は、目に見え、心に思ふ事を、人やは見んずると思ひて、徒然なる里居のほどに、書き集めたるを、あいなく、人のため便なきいひ過しなどしつべき所々もあれば、きようかくしたりと思ふを、涙せきあへずこそなりにけれ。宮の御前に、内大臣の奉り給へりけるを、「これに何を書かまし。うへの御前には、史記といふ文を書かせ給へる」などの給はせしを、「枕にこそはし侍らめ」と申ししかば、「さば得よ」とて賜はせたりしを、あやしきを、こよや何やと、つきせずおほかる紙の數を、書きつくさんとせしに、いと物おぼえぬことぞおほかるや。大かたこれは世の中にをかしき事を、人のめでたしなど思ふべき事、なほ選り出でて、歌などをも、木、草、鳥、蟲をもいひ出したらばこそ、思ふほどよりはわろし、心見えなりともそしられめ。ただ心ひとつに、おのづから思ふことを、たはぶれに書きつけたれば、物に立ちまじり、人なみ/\なるべき耳をも聞くべきものかはと思ひしに、はづかしきなども、見る人はの給ふなれば、いとあやしくぞあるや。實にそれもことわり、人の憎むをもよしといひ、譽むるをもあしといふは、心の程こそおしはからるれ。ただ人に見えけんぞねたきや。
枕草紙 (Makura no soshi) | ||