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第二百十九段

四條黄門命ぜられて云はく、「龍秋は、道にとりてはやん事なき者なり。先日來りて 云はく、『短慮の至り、極めて荒涼の事なれども、横笛の五の穴は、聊かいぶかしき 所の侍るかと、ひそかに是を存ず。其の故は、干の穴は平調、五の穴は下無調なり。 其の間に、勝絶調を隔てたり。上の穴雙調、次に鳧鐘調をおきて、夕の穴黄鐘調なり。 其の次に鸞鏡調を置きて、中の穴盤渉調。中と六とのあはひに神仙調あり。かやうに 間間に皆一律を盗めるに、五の穴のみ、上の間に調子をもたずして、しかも間をくば る事等しき故に、其の聲不快なり。されば此の穴を吹く時は、必ずのく。のけあへぬ 時は、物にあはず。吹きうる人難し』と申しき。料簡の至り、誠に興あり。先達、後 生を畏ると云ふこと、此の事なり」と侍りき。

他日に景茂が申し侍りしは、「笙は、調べおほせて持ちたれば、たゞ吹くばかりなり。 笛は吹きながら、息のうちにて、かつ調べもてゆく物なれば、穴毎に口傳の上に性骨 を加へて心をいるゝこと、五の穴のみにかぎらず。ひとへにのくとばかりも定むべか らず。惡しく吹けばいづれの穴も心よからず。上手はいづれをも吹きあはす。呂律の 物にかなはざるは、人のとがなり。器の失にあらず」と申しき。