1,2,3,4,5. |
6,7,8,9,10,11,12. |
13. |
15. |
16. |
14. |
17. |
18. |
20. |
19. |
22, 23, 24. |
25. |
26. |
27. |
28. |
29. |
30. |
31, 32, 33, 34, 35, 36, 50, 51, 52, 53, 54, 55 . |
37. |
38. |
39. |
40. |
41. |
42. |
43, 44. |
45, 46, 47, 48, 49, 56, 57, 58, 59, 60. |
61. |
62. |
64. |
65. |
66. |
68. |
69. |
67. |
70. |
71, 72, 73, 74. |
75, 76, 77, 78. |
79. |
76, 76, 77, 78. |
80, 81,82,83,84. |
85. |
88. |
89,90,91,92,93,94. |
95. |
96. |
97. |
98,99,101,102,103,104,105,106. |
107,108. | [107、108] |
111. |
112. |
115. |
116. |
117,118. |
119,120. |
121. |
122. |
123. |
124. |
125,126. |
127,128,129,130,131,132,133,134,135,136,137,138. |
139. |
140. |
141. |
142,143,144,145,146. |
147. |
148. |
149. |
150. |
151. |
152. |
153. |
154. |
155. |
156. |
157. |
158. |
159. |
160,161,162. |
163. |
164,165. |
166. |
167. |
168. |
178,179,181,182,183,184. |
185,186. |
197,198,199,200. |
201. |
204. |
205. |
205. |
208. |
209. |
211. |
210. |
212. |
213. |
215. |
216. |
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218. |
219,220,221,223,224,230,232. |
233. |
234. |
235,236,237,238,239. |
242. |
243. |
250. |
252. |
253. |
254. |
255. |
256. |
258. |
259. |
247,248. |
260. |
261. |
263. |
264. |
265,266,267,268,269,270,271. |
276,277,278. |
279. |
280. |
281. |
282. |
283. |
284. |
285. |
286. |
287. |
288. |
289,290,291,292,293,294. |
295,296,297,298,299,300,301,302,303. |
304. |
305,306,307,308,309,310,311,313,314,315,316,317. |
A6. |
A7. |
A8. |
A9. |
A10. |
A11. |
188. |
A23, A24. |
109,319. |
枕草紙 (Makura no soshi) | ||
[107、108]
はるかなるもの
千日の精進はじむる日。半臂の緒ひねりはじむる日。陸奧國へゆく人の逢阪の關 こゆるほど。うまれたる兒のおとなになるほど。大般若經御讀經一人して讀み始むる。十二年の山ごもりの始めてのぼる日。
方弘はいみじく人に笑はるるものかな。親などいかに聞くらん。供にありくもの ども、いと人々しきを呼びよせて、「何しにかかるものにはつかはるるぞ、いかが覺 ゆる」など笑ふ。物いとよくするあたりにて、下襲の色、うへのきぬなども、人より はよくて著たるを、「これは他人に著せばや」などいふに、實にぞ詞遣などのあやし き。里に宿直物とりにやるに、「男二人まかれ」といふに、「一人して取りにまかり なんものを」といふに、「あやしの男や、一人して二人の物をばいかで持つべきぞ。 一升瓶に二升は入るや」といふを、なでふ事と知る人はなけれど、いみじう笑ふ。人 の使のきて「御返事疾く」といふを、「あなにくの男や、竈に豆やくべたる。この殿 上の墨筆は、何者の盗みかくしたるぞ。飯酒ならばこそ、ほしうして人の盗まめ」と いふを、又わらふ。女院なやませ給ふとて、御使にまゐりて歸りたるに、「院の殿上 人は誰々かありつる」と人の問へば、それかれなど四五人ばかりといふに、「又は」と問へば、「さてはいぬる人どもぞありつる」といふを、また笑ふも、又あやしき事にこそはあらめ。「人間に寄りきて、わが君こそまづ物きこえん。まづ/\人ののたまへる事ぞといへば、何事にかとて几帳のもとによりたれば、躯籠により給へといふに、五體ごめにとなんいひつる」といひて、また笑ふ。除目の中の夜、指油するに、燈臺のうちしきを踏みて立てるに、新しき油單なれば、つようとらへられにけり。さし歩みて歸れば、やがて燈臺はたふれぬ。襪はうちしきにつきてゆくに、まことに道こそ震動したりしか。頭つき給はぬほどは、殿上の臺盤に人もつかず。それに方弘は豆一盛を取りて、小障子のうしろにてやをら食ひければ、ひきあらはして笑はるる事ぞかぎりなきや。
枕草紙 (Makura no soshi) | ||